शून्य की खोज कब ओर कैसे हूई थी और इसके आविष्कारक कोन हैं ? जाने यहाँ

शून्य की खोज कब ओर कैसे हूई थी?

शून्य की खोज 5वीं शताब्दी में भारत में हुई थी। इसे भारतीय गणितज्ञ और खगोलशास्त्री आर्यभट्ट ने अपनी खगोलीय गणनाओं में एक प्रतीक के रूप में इस्तेमाल किया था|शून्य की अवधारणा को सबसे पहले प्राचीन भारत में एक प्लेसहोल्डर के रूप में इस्तेमाल किया गया था। इसके बाद, भारतीय गणितज्ञों ने इसे एक संख्या के रूप में मान्यता दी और इसके साथ गणितीय संक्रियाएं विकसित कीं। 5वीं शताब्दी में, आर्यभट्ट ने अपनी खगोलीय गणनाओं में शून्य के लिए एक प्रतीक का उपयोग किया, जिससे शून्य का उपयोग व्यापक रूप से लोकप्रिय हुआ| बाद में, शून्य का ज्ञान अरब दुनिया में पहुंचा, और वहां से यूरोप में भी फैल गया |

  • शून्य, एक संख्या के रूप में, प्राचीन भारत में विकसित हुआ|
  • 5वीं शताब्दी ईस्वी के आसपास, भारतीय गणितज्ञ और खगोलशास्त्री आर्यभट्ट ने अपनी खगोलीय गणनाओं में शून्य के लिए एक प्रतीक का उपयोग किया था|
  • इसके बाद, 7वीं शताब्दी ईस्वी में, भारतीय गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त ने शून्य को एक संख्या के रूप में परिभाषित किया और इसके साथ गणितीय संक्रियाओं के नियम भी लिखे |
  • इस प्रकार, शून्य का विचार और इसका उपयोग, पहले भारत में विकसित हुआ, और फिर दुनिया भर में फैला |
  • पश्चिमी दुनिया में शून्य का परिचय, 9वीं शताब्दी ईस्वी में अरब गणितज्ञ अल-ख्वारिज्मी के माध्यम से हुआ |

शून्य किया है ओर इसका उपयोग किया है ?

शून्य एक ऐसी संख्या है जो किसी मात्रा की अनुपस्थिति या खालीपन को दर्शाता है यह गणित में एक महत्वपूर्ण संख्या है | शून्य योग का एक तत्समक अवयव है| शून्य के आविष्कार से गणित ओर विज्ञान के विकास में एक महत्वपूर्ण योगदान रहा है इससे दशमलव प्रणाली को विकसित करना संभब हुआ | जो आज दुनिया भर मे आम प्रणाली है शून्य से ही दशमलव प्रणाली का उपयोग करना संभव हुआ है ओर शून्य के बिना गणित ओर विज्ञान के अधिकतर क्षेत्रों में प्रगति करना मुश्किल होगा|

  • शून्य एक पूर्ण संख्या है और इसे संख्या रेखा पर  द्वारा दर्शाया जाता है।
  • शून्य में कई अद्वितीय गुण हैं। किसी भी संख्या में शून्य जोड़ने या घटाने पर वह संख्या अपरिवर्तित रहती है। किसी भी संख्या को शून्य से गुणा करने पर परिणाम शून्य आता है। 
  • शून्य एक प्लेसहोल्डर के रूप में भी काम करता है, खासकर स्थानीय मान प्रणाली में। उदाहरण के लिए, 100 में, शून्य यह दर्शाता है कि दहाई और इकाई के स्थान पर कोई मान नहीं है।
  • शून्य को अक्सर “खालीपन” या “अनुपस्थिति” के रूप में भी देखा जाता है।
  • शून्य का इतिहास बहुत पुराना है, और इसका आविष्कार भारत में हुआ था। 

शून्य के आविष्कारक कोन है ?

शून्य की खोज 5वीं शताब्दी में भारत में हुई थी। इसे भारतीय गणितज्ञ और खगोलशास्त्री आर्यभट्ट ने अपनी खगोलीय गणनाओं में एक प्रतीक के रूप में इस्तेमाल किया था| लेकिन शून्य की खोज का श्रेय मुख्य रूप से ब्रह्मगुप्त को दिया जाता है  उन्होंने 7वीं शताब्दी ईस्वी में शून्य को एक संख्या के रूप में मान्यता दी और इसके साथ अंकगणितीय संक्रियाओं के नियमों को विकसित किया| हालाँकि, शून्य की अवधारणा का विकास एक क्रमिक प्रक्रिया थी, जिसमें आर्यभट्ट जैसे अन्य भारतीय गणितज्ञों ने भी महत्वपूर्ण योगदान दिया |

अमेरिका के एक गणितज्ञ का कहना है कि शून्य का आविष्कार भारत में नहीं हुआ था। अमेरिकी गणितज्ञ आमिर एक्जेल ने ‌सबसे पुराना शून्य कंबोडिया में खोजा है। और कहा जाता है की सर्वनन्दि नामक दिगम्बर जैन मुनि द्वारा मूल रूप से प्रकृत में रचित लोकविभाग नामक ग्रंथ में शून्य का उल्लेख सबसे पहले मिलता है।

  • कुछ लोग आर्यभट्ट को शून्य के आविष्कार का श्रेय देते हैं, लेकिन उनका मुख्य योगदान दशमलव प्रणाली में शून्य के उपयोग को स्थापित करना था|
  • 7वीं शताब्दी में ब्रह्मगुप्त ने शून्य को एक संख्या के रूप में परिभाषित किया और इसके साथ जोड़, घटाव, गुणा और भाग जैसे गणितीय संक्रियाओं के नियमों को विकसित किया. उन्होंने अपनी पुस्तक “ब्रह्मस्फुटसिद्धांत” में शून्य के बारे में विस्तार से लिखा|
  • शून्य का विकास एक क्रमिक प्रक्रिया थी, जिसमें विभिन्न भारतीय गणितज्ञों ने योगदान दिया। 


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