विश्व की प्रथम पोर्टेबल घड़ी :
ऐतिहासिक रूप से देखा जाए तो, ‘घड़ी’ (Clock) के विकास को कई चरणों में देखा जाता है, लेकिन पोर्टेबल घड़ी (Watch) के संदर्भ में, सबसे पहली मानी जाने वाली घड़ी पोमैंडर वॉच ऑफ 1505 (Watch 1505) है। पोमैंडर वॉच ऑफ 1505 जर्मन के आविष्कारक पीटर हेनलेन (Peter Henlein) ने वर्ष 1505 में बनाई थी। इसे दुनिया की सबसे पुरानी ज्ञात पोर्टेबल घड़ी माना जाता है जो आज भी काम करती है। यह वजन (weights) के बजाय स्प्रिंग पर चलने वाली पहली घड़ियों में से एक थी, जिसने पोर्टेबिलिटी संभव की।
| विशेषता | विवरण |
| नाम | वॉच 1505 या पोमैंडर वॉच ऑफ 1505 |
| आविष्कारक | पीटर हेनलेन (Peter Henlein), नूर्नबर्ग, जर्मनी के एक ताला बनाने वाले और घड़ीसाज़। |
| निर्माण वर्ष | 1505 ईस्वी |
| पावर सोर्स | मेनस्प्रिंग (Mainspring) या कॉइल स्प्रिंग। यह इसे वज़न-आधारित टावर घड़ियों से अलग करता है और पोर्टेबल बनाता है। |
| स्वरूप | यह एक छोटे, गोलाकार या सेब के आकार के पोमैंडर (सुगंधित सामग्री रखने वाला आभूषण) के भीतर बनी है। |
| सामग्री | मुख्य रूप से तांबा, जिस पर बाहर की तरफ सोने का पानी चढ़ा हुआ है। |
| महत्व | इसे स्प्रिंग-संचालित तकनीक का उपयोग करके बनाई गई विश्व की सबसे पुरानी ज्ञात पोर्टेबल घड़ी माना जाता है जो आज भी काम करती है। |
| पहनावा | इसे पेंडेंट (लटकन) के रूप में गले में पहना जाता था या कपड़ों से जोड़ा जाता था। |
यदि हम ‘टाइमपीस’ (समय मापने वाले उपकरण) की बात करें, तो घड़ी (क्लॉक) से पहले भी कई उपकरण थे।
सूर्य घड़ी (Sundial): प्राचीन मिस्र और बेबीलोन में लगभग 1500 ईसा पूर्व से उपयोग में थी, जो सूर्य की छाया से समय बताती थी।
जल घड़ी (Water Clock/Clepsydra): इसका उपयोग प्राचीन सभ्यताओं (जैसे मिस्र, चीन) में बहुत पहले से होता आ रहा था, और यह रात या बादल छाए रहने पर भी समय बता सकती थी।
यांत्रिक दीवार घड़ी (Mechanical Tower Clocks): 13वीं और 14वीं शताब्दी में यूरोप के मठों और टावरों में भारी, वजन-संचालित यांत्रिक घड़ियाँ लगाई गईं, लेकिन ये पोर्टेबल नहीं थीं और इनमें अक्सर केवल घंटे की घंटी बजती थी।



बड़ी घड़ियों से पोर्टेबल जेब घड़ी (Pocket Watch) तक का सफर:
घड़ी के पोर्टेबल होने का सफर (टावर क्लॉक से पॉकेट वॉच तक) एक महत्वपूर्ण तकनीकी प्रगति थी। यह सफर मुख्य रूप से एक महत्वपूर्ण आविष्कार पर टिका था।
- 1. पोर्टेबल घड़ियों से पहले की स्थिति: यांत्रिक दीवार घड़ी (13वीं-15वीं शताब्दी):
शुरुआती यांत्रिक घड़ियाँ (जैसे टावर क्लॉक) बड़े आकार की होती थीं और चलती थीं। - पावर सोर्स (शक्ति का स्रोत): भारी वज़नों (Weights) की मदद से। वज़न नीचे गिरते थे, जिससे गियर घूमते थे।
- दिक्कत: वज़न के कारण ये घड़ियाँ केवल स्थिर जगह (जैसे टावर या दीवार) पर ही काम कर सकती थीं।
- 2. क्रांतिकारी आविष्कार: मेनस्प्रिंग (Mainspring):
15वीं शताब्दी की शुरुआत में, मुख्य चुनौती वज़न को किसी और चीज़ से बदलना थी, जो घड़ी को छोटा और पोर्टेबल बना सके। - आविष्कार: मेनस्प्रिंग (Mainspring) या कॉइल स्प्रिंग का आविष्कार, जिसे घड़ी के अंदर कसकर लपेटा जा सकता था।
- कार्यप्रणाली: चाबी से मेनस्प्रिंग को कसने पर उसमें ऊर्जा जमा हो जाती थी, और जब स्प्रिंग धीरे-धीरे खुलता था, तो वह घड़ी के गियर को चलाता था।
- परिणाम: वज़न की आवश्यकता समाप्त हो गई, जिससे पहली बार एक छोटी, ले जाने योग्य घड़ी बनाना संभव हो गया।
- 3. पहली पोर्टेबल घड़ी: वॉच 1505 (Peter Henlein):
मेनस्प्रिंग के सिद्धांत का उपयोग करने वाले पहले कारीगरों में से एक पीटर हेनलेन थे।
| चरण | घड़ी का नाम और समय | विशेषता |
| पोर्टेबल वॉच का जन्म | पोमैंडर वॉच/वॉच 1505 (16वीं शताब्दी की शुरुआत) | हेनलेन ने इस घड़ी में मेनस्प्रिंग का उपयोग किया। यह एक गेंद या सेब के आकार की घड़ी थी जिसे गले में पेंडेंट की तरह पहना जा सकता था या जेब में रखा जा सकता था। |
| अंडाकार/ड्रम के आकार की घड़ियाँ | नूर्नबर्ग अंडे (16वीं शताब्दी) | हेनलेन और अन्य कारीगरों ने पोर्टेबल घड़ियों को ड्रम या अंडाकार आकार में बनाना शुरू किया, जो “पॉकेट वॉच” का प्रारंभिक रूप था। |
- 4. जेब घड़ी (Pocket Watch) का विकास (17वीं शताब्दी):
- जैसे-जैसे घड़ियों का डिज़ाइन और आकार पतला होता गया, उन्हें कपड़ों से बाँधने के बजाय जेब (पॉकेट) में रखा जाने लगा। यहीं से पॉकेट वॉच शब्द आया।
- सुरक्षा के लिए चेन: चूंकि स्प्रिंग-संचालित घड़ियाँ गिरने पर आसानी से टूट सकती थीं, इसलिए उन्हें कमरकोट या कपड़े से जोड़ने के लिए एक चेन का उपयोग किया जाने लगा।
- इस प्रकार, मेनस्प्रिंग के आविष्कार ने ही वज़न-आधारित टावर क्लॉक को हाथ से ले जाने योग्य पॉकेट वॉच में बदल दिया।
पीटर हेनलेन (Peter Henlein) का जीवन परिचय :
पीटर हेनलेन (Peter Henlein) एक जर्मन ताला बनाने वाले (locksmith) और घड़ीसाज़ (clockmaker/watchmaker) थे, जिन्हें पोर्टेबल (ले जाने योग्य) घड़ियों के शुरुआती विकास के लिए जाना जाता है।
👤 जीवन परिचय:
| विवरण | जानकारी |
| जन्म | 1485 (नूर्नबर्ग, जर्मनी) |
| मृत्यु | अगस्त 1542 (नूर्नबर्ग, जर्मनी) |
| राष्ट्रीयता | जर्मन |
| व्यवसाय | ताला बनाने वाला (Locksmith), घड़ीसाज़ (Clockmaker) |
| उपलब्धि | पोर्टेबल स्प्रिंग-संचालित घड़ी (वॉच) बनाने वाले शुरुआती कारीगरों में से एक। |
1. प्रारंभिक जीवन और व्यवसाय:
- पृष्ठभूमि: हेनलेन ने अपने शुरुआती जीवन में एक ताला बनाने वाले (Locksmith) के रूप में प्रशिक्षण लिया। उस समय, यांत्रिक घड़ी बनाने के लिए आवश्यक सूक्ष्म कौशल और उपकरण ताला बनाने वाले कारीगरों के पास ही होते थे।
- मास्टर कारीगर: नवंबर 1509 में, वह नूर्नबर्ग शहर के ताला बनाने वाले गिल्ड में एक मास्टर बन गए।
2. क्रांतिकारी आविष्कार: पोर्टेबल घड़ी:
हेनलेन को इतिहास में मुख्य रूप से घड़ी की पोर्टेबिलिटी (ले जाने की क्षमता) को संभव बनाने के लिए जाना जाता है।
- तकनीकी नवाचार: उन्होंने मेनस्प्रिंग (Mainspring) और कॉइल स्प्रिंग तंत्र के लघुकरण (miniaturization) का उपयोग किया। इससे घड़ी को चलाने के लिए भारी वज़नों (Weights) की आवश्यकता समाप्त हो गई, जिससे पहली बार एक छोटी, ले जाने योग्य घड़ी बनाना संभव हुआ।
- वॉच 1505 (Pomander Watch): माना जाता है कि उन्होंने लगभग 1505 के आस-पास ‘वॉच 1505’ का निर्माण किया था। यह गोलाकार, पोमैंडर (Pomander) के आकार की थी, जो एक सजावटी आभूषण होता था जिसका उपयोग सुगंधित सामग्री रखने के लिए किया जाता था।
- पहनावा: ये स्प्रिंग-संचालित घड़ियाँ कीमती होने के कारण, इन्हें पेंडेंट के रूप में पहना जाता था या कपड़ों से बाँधा जाता था। इन घड़ियों को ही शुरुआती “वॉच” (Watch) माना जाता है।
- अन्य कार्य: उन्होंने ड्रम के आकार की छोटी घड़ियाँ भी बनाईं, जिन्हें अक्सर ‘नूर्नबर्ग अंडे’ (Nuremberg Eggs) कहा जाता था।
3. अन्य योगदान और मान्यता:
- वैज्ञानिक प्रशंसा: 1511 में, जोहान कोचलेस ने हेनलेन की कला की प्रशंसा करते हुए लिखा था कि वह “लोहे के छोटे टुकड़ों से कई पहियों वाली घड़ियाँ बनाते हैं, जो बिना किसी वज़न के चालीस घंटे तक चलती हैं और समय बताती हैं, भले ही उन्हें छाती या हैंडबैग में रखा जाए।”
- खगोलीय उपकरण: वह केवल छोटी घड़ियाँ ही नहीं बनाते थे, बल्कि उन्नत खगोलीय उपकरण और 1541 में टॉवर क्लॉक भी बनाते थे।
- मृत्यु: पीटर हेनलेन की मृत्यु अगस्त 1542 में नूर्नबर्ग में हुई।
- सम्मान: उन्हें आज भी पोर्टेबल घड़ियों के आविष्कारक के रूप में उच्च सम्मान दिया जाता है और डोनास्टाफ़ में वल्लाह स्मारक में “घड़ी के आविष्कारक” के शब्दों के साथ उन्हें सम्मानित किया गया है।
पीटर हेनलेन की ‘वॉच 1505’ (Watch 1505) की प्रमुख विशेषताएँ और बनावट:
🌟 बनावट और स्वरूप (Design and Appearance):
- आकार: इसका आकार एक छोटे, गोल डिब्बे जैसा था, जिसे उस समय ‘पोमैंडर’ (Pomander) कहा जाता था। पोमैंडर सुगंधित सामग्री रखने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले आभूषण होते थे। कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार, यह एक सेब के आकार जैसा दिखता था।
- सामग्री: यह मुख्य रूप से तांबे से बनी थी, जिसके बाहरी हिस्से पर सोने का पानी चढ़ा हुआ था।
- संरचना: यह दो छोटे गोलार्द्धों (half-spheres) से बनी थी, जो एक हिंज (कब्जे) से जुड़े थे। ऊपरी हिस्से को खोलने पर अंदर एक और छोटा गोलार्द्ध दिखाई देता था, जिसके ऊपर डायल (dial) लगा होता था।
- डायल: डायल पर रोमन और अरबी दोनों तरह के अंक खुदे हुए थे।
- पोर्टेबिलिटी (Portability): यह पहली छोटी घड़ी थी जिसे जेब में रखा जा सकता था या पेंडेंट की तरह गले में पहना जा सकता था।
- निशान: घड़ी के अंदर की तरफ ‘PHN’ (Peter Henlein Nürnberg) और ‘MDV’ (रोमन अंकों में 1505) जैसे निशान पाए गए, जो इसके आविष्कारक और वर्ष का संकेत देते हैं।
⚙️ तकनीकी विशेषताएँ (Technical Features):
- कार्यप्रणाली: यह घड़ी स्प्रिंग-संचालित (spring-driven) थी, जो इसे पोर्टेबल बनाने का मुख्य कारण था, क्योंकि इससे पहले की घड़ियाँ (जैसे टावर घड़ी) वजन पर निर्भर करती थीं।
- आंतरिक मशीनरी: इसका मूवमेंट (चलने का तंत्र) मुख्य रूप से लोहे से बना था।
- सटीकता और पावर रिजर्व: यह उस समय के हिसाब से एक बड़ी तकनीकी नवीनता थी। इसमें लगभग 12 घंटे तक चलने की शक्ति (पावर रिजर्व) थी, हालाँकि इसकी सटीकता आज की घड़ियों जितनी नहीं थी।
- सुई (Hand): इसमें केवल घंटे वाली सुई थी, मिनट या सेकंड की सुई नहीं थी।
‘वॉच 1505’ अपनी पोर्टेबिलिटी और अभिनव तकनीक के कारण घड़ियों के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर मानी जाती है।
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