मौर्य राजवंश के महान और शक्तिशाली सम्राट अशोक सम्राट का इतिहास,जीवनी, उपपत्तियाँ और शासनकाल||

महान अशोक सम्राट :

अशोक (प्राकृत भाषा: 𑀅𑀲𑁄𑀓) का जन्म जन्म लगभग 304 ईसा पूर्व पाटलिपुत्र, में हुआ था। जो उस समय मौर्य साम्राज्य की राजधानी थी और जिसे आज पटना (बिहार) के नाम से जाना जाता है। सम्राट अशोक एक शक्तिशाली, कुशल और परोपकारी राजा थे। अशोक सम्राट का साशन काल लगभग 268 ईसा पूर्व से 232 ईसा पूर्व तक रहा। अपने शासनकाल के शुरुआती आठ वर्षों में, अशोक एक विस्तारवादी और दृढ़निश्चयी योद्धा सम्राट थे। कलिंग युद्ध के बाद, उन्होंने युद्ध की नीति को हमेशा के लिए त्याग दिया और बौद्ध धर्म के सिद्धांतों को अपना लिया। इसके बाद उनका शासन धर्म और जनकल्याण पर केंद्रित हो गया।

⚔️महान विजेता (चंड अशोक):
  • विस्तृत साम्राज्य: उन्होंने अपने दादा चंद्रगुप्त मौर्य और पिता बिंदुसार से विरासत में मिले मौर्य साम्राज्य का विस्तार किया। उनके राज्य की सीमाएँ उत्तर-पश्चिम में अफ़गानिस्तान से लेकर दक्षिण में मैसूर तक फैली हुई थीं, जो अब तक का सबसे बड़ा भारतीय साम्राज्य था।
  • कलिंग युद्ध: 261 ईसा पूर्व में कलिंग (वर्तमान ओडिशा) पर उनकी जीत क्रूर और भयानक थी। इस युद्ध में हुए भीषण रक्तपात और विनाश को देखकर ही उनका हृदय परिवर्तन हुआ।
🕊️धम्म-विजयी (धर्माशोक):
  • धम्म (Dharma) नीति: उन्होंने एक नैतिक आचार संहिता अपनाई, जिसे ‘धम्म’ कहा जाता है। यह कोई धार्मिक पंथ नहीं था, बल्कि सार्वभौमिक नैतिक मूल्यों का एक समूह था।
  • अहिंसा (Non-Violence): पशु बलि पर रोक लगाना और सभी प्राणियों के प्रति दया रखना।
  • सहिष्णुता (Tolerance): सभी धर्मों और संप्रदायों का सम्मान करना।
  • सत्य और सदाचार: बड़ों का आदर करना, दास और सेवकों के प्रति मानवीय व्यवहार करना।
  • कुशल प्रशासन: उन्होंने न्याय और लोक कल्याण सुनिश्चित करने के लिए धम्म महामात्र जैसे अधिकारियों की नियुक्ति की।
  • जनकल्याण के कार्य: उन्होंने मनुष्य और पशुओं के लिए अस्पताल बनवाए, सड़कों के किनारे कुएँ खुदवाए और छायादार वृक्ष लगवाए।
  • बौद्ध धर्म का प्रचार: उन्होंने भारत के बाहर (जैसे श्रीलंका, मध्य एशिया) भी बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए मिशनरी भेजे, लेकिन यह प्रचार शांतिपूर्ण तरीके से हुआ।

एच. जी. वेल्स (H. G. Wells) जैसे इतिहासकारों ने उन्हें ‘इतिहास के स्तम्भों को भरने वाले राजाओं के बीच एकाकी तारे’ के रूप में वर्णित किया है। , सम्राट अशोक को एक महान, शक्तिशाली, और अद्वितीय शासक के रूप में जाना जाता है, जिन्होंने अपनी शक्ति का उपयोग भौतिक विजय के बजाय नैतिक और धार्मिक आदर्शों की स्थापना के लिए किया।

अशोक सम्राट का जीवन परिचय:

अशोक सम्राट, मौर्य वंश के तीसरे सम्राट, सम्राट बिंदुसार और रानी धर्मा के पुत्र थे एक लोकप्रिय बौद्ध कथा के अनुसार, जब उन्होंने अशोक को जन्म दिया, तो उन्होंने कहा कि वह अब शोक (दुःख) से मुक्त हो गई हैं, इसलिए उनके पुत्र का नाम अशोक (बिना शोक के) पड़ा। सम्राट बिंदुसार ने उन्हें प्रसन्नतापूर्वक ‘धर्मा’ नाम दिया था।

रानी धर्मा का परिचय :

रानी धर्मा का परिचय : रानी धर्मा मौर्य सम्राट बिंदुसार (सम्राट अशोक के पिता) की प्रमुख पत्नियों में से एक थीं। रानी धर्मा के दो पुत्र थे। जिनके नाम अशोक और विताशोक (या तिष्य, जो अशोक का सहोदर भाई था और बाद में एक भिक्षु बन गया) था।

उन्हें विभिन्न ग्रंथों में सुभद्रांगी (उत्तरी बौद्ध परंपरा, अशोकावदान के अनुसा), धर्मा या धम्मा (दक्षिणी सिंहली परंपरा, महावंश के अनुसार), जनपदकल्याणी नाम से भी जाना जाता है।

अधिकांश स्रोतों के अनुसार, रानी धर्मा ब्राह्मण कुल से थीं, जबकि कुछ सिंहली परंपराएँ उन्हें मोरीय क्षत्रिय वंश से बताती हैं। वह चम्पा (आधुनिक बिहार में एक प्राचीन शहर) की निवासी थीं। चूँकि वह शाही या क्षत्रिय कुल से नहीं थीं, इसलिए कुछ स्रोतों का कहना है कि उन्हें शुरुआत में राजमहल में अन्य रानियों से विशेष सम्मान या उच्च स्थान प्राप्त नहीं था।

सम्राट विंदुसार का परिचय :

सम्राट बिंदुसार मौर्य राजवंश के दूसरे सम्राट थे, जिन्होंने एक विशाल साम्राज्य को सफलतापूर्वक संभाला और अपने पुत्र, महान सम्राट अशोक के लिए मार्ग प्रशस्त किया। इनका शासन काल लगभग 297 ईसा पूर्व से 273 ईसा पूर्व तक रहा।

सम्राट विंदुसार के पिता मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य और इनकी माता दुर्धरा (जैन परंपराओं के अनुसार) थीं। सम्राट विंदुसार के प्रमुख सलाहकार चाणक्य (शुरुआती वर्षों में) थे।

विरासत: बिंदुसार को अपने पिता चंद्रगुप्त मौर्य से एक विशाल साम्राज्य विरासत में मिला था, जो उत्तर-पश्चिम में अफगानिस्तान से लेकर पूर्व में बंगाल तक फैला हुआ था।

दक्षिण की विजय: उन्होंने दक्षिण भारत की ओर साम्राज्य का विस्तार किया। तिब्बती इतिहासकार तारानाथ के अनुसार, बिंदुसार ने चाणक्य की मदद से पूर्वी और पश्चिमी समुद्रों के बीच के भूभाग पर विजय प्राप्त की, जिससे मौर्य साम्राज्य लगभग पूरे भारतीय उपमहाद्वीप (सुदूर दक्षिण के चोल, पांड्य और चेर राज्यों को छोड़कर) पर फैल गया।

आंतरिक स्थिरता: उनके शासनकाल में तक्षशिला में विद्रोह हुआ था, जिसे उन्होंने अपने पुत्र अशोक को भेजकर सफलतापूर्वक शांत करवाया था।
यूनानी संबंध: बिंदुसार के यूनानी शासकों (जैसे सीरिया के एंटियोकस प्रथम) के साथ घनिष्ठ कूटनीतिक संबंध थे। यूनानी राजदूत डायमेकस उनके दरबार में आया था। एक प्रसिद्ध घटना के अनुसार, बिंदुसार ने एंटियोकस से सूखी अंजीर, मीठी शराब और एक दार्शनिक भेजने का अनुरोध किया था, लेकिन एंटियोकस ने दार्शनिक बेचने से मना कर दिया था।

धार्मिक सहिष्णुता: बिंदुसार आजीवक संप्रदाय के अनुयायी थे, लेकिन वह अन्य सभी धर्मों के प्रति सहिष्णु थे और विद्वानों तथा दार्शनिकों का आदर करते थे।

बिंदुसार ने एक शक्तिशाली नींव पर शासन किया, साम्राज्य की सीमाओं को सुरक्षित रखा और इसका दक्षिण की ओर विस्तार किया, जिससे उनके पुत्र अशोक के भव्य शासनकाल के लिए एक स्थिर आधार तैयार हुआ। बिंदुसार को यूनानी और भारतीय ग्रंथों में विभिन्न नामों से जाना जाता है:

  • अमित्रघात : संस्कृत में इस नाम का अर्थ है “शत्रुओं का संहार करने वाला”
  • अमित्रोकेट्स : यूनानी इतिहासकारों द्वारा दिया गया नाम, जो ‘अमित्रघात’ का यूनानी रूप है।
  • सिंहसेन : जैन ग्रंथों में उल्लिखित उनका नाम।
  • भद्रसार/नंदसार: पुराणों में उनका उल्लेख इन नामों से भी मिलता है।

अशोक सम्राट भारतीय मौर्य राजवंश के गोरवशाली,विश्वप्रसिद्ध और शक्तिशाली महान सम्राट थे,जिनको महान अशोक सम्राट से जाना जाता था। इनका पूरा नाम शाही उपाधियाँ (शिलालेखों में उल्लिखित) के बाद देवानाम्प्रिय प्रियदर्शी अशोक (राजा प्रियदर्शी, जो देवताओं के प्रिय हैं) था।

देवानाम्प्रिय : जिसका अर्थ है “देवताओं का प्रिय”प्रियदर्शी : जिसका अर्थ है “देखने में प्रिय” या “शुभ दृष्टि वाला”मास्की लघु शिलालेख एकमात्र महत्वपूर्ण अभिलेख है जहाँ उनकी उपाधि के साथ उनका व्यक्तिगत नाम, अशोक, स्पष्ट रूप से लिखा गया है। सम्राट अशोक का शासन काल लगभग 268 ईसा पूर्व से 232 ईसा पूर्व तक रहा। सम्राट अशोक के नेतृत्व में मौर्य राजवंश का साम्राज्य भारतीय इतिहास का सबसे विशाल और विस्तृत साम्राज्य था। उनका राज वंश लगभग पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैला हुआ था। (उत्तर में हिंदू कुश से लेकर दक्षिण में मैसूर (कर्नाटक), और पूर्व में बांग्लादेश से लेकर पश्चिम में अफ़गानिस्तान और ईरान तक):

सम्राट अशोक (लगभग 304 ईसा पूर्व – 232 ईसा पूर्व) भारतीय इतिहास के मौर्य राजवंश के सबसे महान और शक्तिशाली सम्राट थे। उनका जीवन “क्रूर शासक” से “महान धम्म प्रचारक” तक के परिवर्तन की एक अविश्वसनीय कहानी है। महान अशोक का जन्म लगभग 304 ईसा पूर्व में पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना) में हुआ। वह मौर्य सम्राट बिंदुसार और रानी धर्मा के पुत्र थे। : बौद्ध ग्रंथों के अनुसार, अशोक बचपन से ही अत्यधिक क्रूर और उग्र स्वभाव के थे, जिसके कारण उन्हें ‘चंडाशोक’ (क्रूर अशोक) भी कहा जाता था।सम्राट बनने से पहले, उन्होंने तक्षशिला और उज्जैन जैसे महत्वपूर्ण प्रांतों के राज्यपाल के रूप में कार्य किया, जहाँ उन्होंने विद्रोहों को सफलतापूर्वक दबाया।

बिन्दुसार की मृत्यु के बाद, अशोक को सिंहासन के लिए अपने कई सौतेले भाइयों के साथ भीषण संघर्ष करना पड़ा। यह माना जाता है कि उन्होंने 273 ईसा पूर्व में सत्ता संभाली, लेकिन उनका औपचारिक राज्याभिषेक चार साल बाद लगभग 269 ईसा पूर्व में हुआ, जो सिंहासन के लिए लंबे संघर्ष को दर्शाता है।

⏳ सिंहासन के लिए संघर्ष की अवधि:

सम्राट अशोक को सिंहासन प्राप्त करने के लिए निश्चित रूप से संघर्ष करना पड़ा था, और यह संघर्ष लगभग चार वर्ष तक चला। यह संघर्ष उनके पिता सम्राट बिंदुसार की मृत्यु के बाद उत्तराधिकार को लेकर हुआ था।

पिता बिंदुसार की मृत्यु: लगभग 273 ईसा पूर्व

अशोक द्वारा सिंहासन पर अधिकार: लगभग 273 ईसा पूर्व

औपचारिक राज्याभिषेक: लगभग 269 ईसा पूर्व

संघर्ष की अवधि: बिंदुसार की मृत्यु (273 ईसा पूर्व) और अशोक के विधिवत राज्याभिषेक (269 ईसा पूर्व) के बीच का चार वर्ष (4 Years) का अंतराल सत्ता संघर्ष की पुष्टि करता है। इतिहासकारों का मानना है कि इन चार वर्षों के दौरान अशोक ने अपनी स्थिति मजबूत की और सिंहासन के अन्य दावेदारों को पराजित किया।

⚔️ संघर्ष का स्वरूप:
उत्तराधिकार का विवाद:
सम्राट बिंदुसार के कई पुत्र थे, और सिंहासन का स्वाभाविक दावेदार उनका सबसे बड़ा पुत्र सुसीम (सुमन) था, जो संभवतः तक्षशिला का वायसराय था। अशोक को बिंदुसार के जीवनकाल में उज्जैन का वायसराय (राज्यपाल) नियुक्त किया गया था।

श्रीलंका के बौद्ध ग्रंथ दीपवंश और महावंश में यह अतिरंजित (exaggerated) वर्णन मिलता है कि अशोक ने सिंहासन पाने के लिए अपने 99 भाइयों की हत्या कर दी थी और केवल अपने सहोदर भाई तिष्य (विताशोक) को जीवित छोड़ा था।

हालांकि, अधिकांश आधुनिक इतिहासकार इस संख्या (99 भाई) को काल्पनिक मानते हैं, जिसका उद्देश्य बौद्ध धर्म अपनाने से पहले अशोक की क्रूरता (चंडाशोक) को दर्शाना था।

ऐतिहासिक वास्तविकता: तार्किक रूप से, यह माना जाता है कि अशोक का मुख्य संघर्ष अपने सबसे बड़े भाई सुसीम और संभवतः अन्य प्रमुख प्रतिद्वंद्वियों के साथ हुआ होगा, जिन्होंने बिंदुसार की मृत्यु के बाद सिंहासन पर अपना दावा किया था। अशोक इस संघर्ष में विजयी हुए, अपने प्रतिद्वंद्वियों को पराजित किया, और मगध के सिंहासन पर अपनी पकड़ सुनिश्चित करने के चार साल बाद 269 ईसा पूर्व में औपचारिक रूप से राज्याभिषेक किया।

राज्याभिषेक के बाद, अशोक ने अपने साम्राज्य का विस्तार किया। उनका साम्राज्य अफगानिस्तान से लेकर बंगाल और दक्षिण में मैसूर तक फैला, जो प्राचीन भारत का सबसे बड़ा साम्राज्य था। उनके शासन के आठवें वर्ष (लगभग 261 ईसा पूर्व) में, अशोक ने कलिंग (वर्तमान ओडिशा) पर आक्रमण किया।

यह युद्ध अत्यंत भीषण था, जिसमें लगभग 1,00,000 से अधिक लोग मारे गए और कई घायल या निर्वासित हुए।युद्ध की विभीषिका और रक्तपात ने अशोक के मन पर गहरा प्रभाव डाला। कलिंग युद्ध के बाद अशोक के जीवन में युगांतरकारी परिवर्तन आया। उन्होंने युद्ध की नीति को त्याग कर बौद्ध धर्म को अपना लिया। उन्होंने ‘दिग्विजय’ (भौतिक विजय) के स्थान पर ‘धम्म विजय’ (नैतिक विजय) का मार्ग अपनाया। उनका ‘धम्म’ कोई विशिष्ट धर्म नहीं था, बल्कि सार्वभौमिक नैतिकता पर आधारित एक आचार संहिता थी, जिसके मुख्य सिद्धांत थे:

  • अहिंसा और सभी प्राणियों के प्रति दया।
  • माता-पिता और बड़ों का आदर।
  • गुरुओं और ब्राह्मणों का सम्मान।
  • धार्मिक सहिष्णुता और सद्भाव।

उन्होंने राज्य के संसाधनों का उपयोग जनकल्याण के लिए किया। उन्होंने सड़कें, कुएँ, विश्राम गृह बनवाए और मनुष्य तथा पशुओं के लिए चिकित्सालय स्थापित किए। अशोक ने स्तंभों और चट्टानों पर शिलालेख उत्कीर्ण करवाए, जो उनके धम्म के सिद्धांतों, प्रशासन और नैतिक उपदेशों का प्रसार करते थे। ये अभिलेख ही उनके शासन के सबसे महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्रोत हैं। उन्होंने अपने पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा को बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए श्रीलंका तथा अन्य देशों में भेजा।

अशोक सम्राट और बौद्ध धर्म :

सम्राट अशोक ने कलिंग युद्ध के बाद उत्पन्न हुई भयानक हिंसा और रक्तपात से द्रवित होकर बौद्ध धर्म को अपनाया था। यह उनके जीवन की सबसे महत्वपूर्ण घटना थी, जिसने उन्हें ‘चंडाशोक’ (क्रूर अशोक) से ‘धर्माशोक’ (धर्मपरायण अशोक) में बदल दिया।अशोक के बौद्ध धर्म अपनाने का सबसे बड़ा और निर्णायक कारण कलिंग युद्ध था, जो उनके राज्याभिषेक के आठवें वर्ष (261 ईसा पूर्व) में लड़ा गया था।

💔 कलिंग युद्ध का नरसंहार (The Kalinga War Massacre):

भयानक विनाश: अशोक के 13वें शिलालेख के अनुसार, इस युद्ध में एक लाख से अधिक लोग मारे गए थे, और डेढ़ लाख से अधिक लोगों को बंदी बनाया गया था।

हृदय परिवर्तन: युद्ध के मैदान में फैले मृत्यु और दुःख के विशाल दृश्य ने अशोक को गहरे सदमे में डाल दिया। उन्हें यह एहसास हुआ कि एक राजा की जीत (विजय) भी कितनी विनाशकारी हो सकती है। उन्होंने युद्ध की नीति को हमेशा के लिए त्याग दिया।

🧘 बौद्ध धर्म में शरण लेने के अन्य कारण:
कलिंग युद्ध के पश्चात्ताप के अलावा, बौद्ध धर्म के सिद्धांतों और उसके प्रभाव ने अशोक को आकर्षित किया:

1. अहिंसा और करुणा: बौद्ध धर्म का केंद्रीय सिद्धांत अहिंसा (अ-हानि) और करुणा (दया) है, जो उस क्रूरता और हिंसा के ठीक विपरीत था जिसे अशोक ने कलिंग में देखा और किया था।

2. उपगुप्त का प्रभाव: बौद्ध ग्रंथों के अनुसार, बौद्ध भिक्षु उपगुप्त (या कहीं-कहीं निग्रोध) ने अशोक को बौद्ध धर्म की शिक्षाएँ दीं और उन्हें धम्म के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया।

3. धम्म विजय की नीति: युद्ध से मोहभंग होने के बाद, अशोक ने दिग्विजय (सैन्य विजय) की नीति को त्यागकर धम्म विजय (धर्म और नैतिकता द्वारा विजय) की नीति अपनाई। बौद्ध धर्म ने उन्हें यह नैतिक और दार्शनिक आधार प्रदान किया जिसके द्वारा वे शांति से अपने विशाल साम्राज्य पर शासन कर सकते थे।

4. व्यक्तिगत और पारिवारिक संबंध: उनकी पहली पत्नी, देवी, स्वयं बौद्ध धर्म की अनुयायी थीं, जिसने उन्हें इस धर्म की ओर झुकाने में परोक्ष रूप से सहायता की होगी। इस हृदय परिवर्तन के बाद ही अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए अपने पुत्र महेन्द्र और पुत्री संघमित्रा को श्रीलंका भेजा और पूरे साम्राज्य में धम्म के प्रचार के लिए स्तंभों और शिलालेखों का निर्माण करवाया।

🕊️ धर्म और नैतिक शासन (धम्म की नीति):

1. युद्ध नीति का त्याग: उन्होंने स्थायी रूप से युद्धों पर प्रतिबंध लगा दिया और भेरीघोष (युद्ध का नगाड़ा) के स्थान पर धम्मघोष (धर्म की घोषणा) को अपनाया। कलिंग युद्ध उनके शासनकाल का अंतिम बड़ा सैन्य अभियान था।

2. धम्म महामात्रों की नियुक्ति: उन्होंने समाज के विभिन्न वर्गों, जिसमें महिलाएँ और बंदी भी शामिल थे, के बीच धम्म के संदेश का प्रचार करने के लिए विशेष अधिकारी ‘धम्म महामात्र’ नियुक्त किए।

3. पशु बलि पर प्रतिबंध: उन्होंने अपने साम्राज्य में पशु बलि और अनावश्यक पशु हत्या पर रोक लगाई (विशेषकर राजकीय रसोईघर में)।

4. नैतिक उपदेश: उनके धम्म में माता-पिता की आज्ञा मानना, ब्राह्मणों और श्रमणों (भिक्षुओं) का सम्मान करना, दासों और सेवकों के साथ दयालुता का व्यवहार करना, और सभी के प्रति सहिष्णुता रखना शामिल था।

🏛️ अभिलेखों और स्थापत्य के कार्य:
अशोक ने अपने नैतिक और धार्मिक संदेशों को दूर-दूर तक पहुँचाने के लिए एक अभूतपूर्व संचार प्रणाली का उपयोग किया:

शिलालेख और स्तंभ लेख: उन्होंने पूरे साम्राज्य में (अफगानिस्तान से कर्नाटक तक) शिलालेखों, लघु शिलालेखों और स्तंभों पर अपने संदेश (धम्म) उत्कीर्ण करवाए। ये प्राचीन भारतीय इतिहास के सबसे विश्वसनीय स्रोत हैं। ये अभिलेख मुख्य रूप से ब्राह्मी और खरोष्ठी लिपियों में और प्राकृत भाषा में लिखे गए थे। उनके द्वारा बनवाए गए स्तंभों में से एक, सारनाथ का सिंह शीर्ष, आज भारत का राष्ट्रीय प्रतीक है, और अशोक चक्र राष्ट्रीय ध्वज में मौजूद है।

स्तूपों का निर्माण: बौद्ध परंपरा के अनुसार, उन्होंने बुद्ध के अवशेषों को रखने के लिए पूरे एशिया में 84,000 स्तूपों के निर्माण का आदेश दिया, जिनमें सांची का महान स्तूप सबसे प्रसिद्ध है।

यह स्तूप सम्राट अशोक द्वारा तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में बनवाया गया था और यह भारत में बौद्ध कला तथा वास्तुकला का सबसे बेहतरीन संरक्षित उदाहरण है। यह मध्य प्रदेश में स्थित है।

तृतीय बौद्ध संगीति: उन्होंने पाटलिपुत्र में तीसरी बौद्ध संगीति (परिषद) का संरक्षण किया, जिसने बौद्ध धर्म के सैद्धांतिक पहलुओं को मजबूत करने और इसे विश्व स्तर पर फैलाने के लिए मिशन भेजने का निर्णय लिया।

🌍 जनकल्याण और अंतर्राष्ट्रीय प्रचार:
अशोक ने जनता के कल्याण को अपने शासन का मुख्य लक्ष्य बना लिया:

  • उन्होंने मनुष्यों और पशुओं के लिए चिकित्सालय (अस्पताल) बनवाए।
  • सड़कों के किनारे छायादार वृक्ष लगवाए, कुएँ खुदवाए और यात्रियों के लिए विश्रामगृह बनवाए।
  • दास प्रथा और अन्य सामाजिक बुराइयों को कम करने के लिए कदम उठाए।
  • उन्होंने अपने पुत्र महेन्द्र और पुत्री संघमित्रा को बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए श्रीलंका भेजा।
  • मध्य एशिया, सीरिया, मिस्र और यूनान (ग्रीस) जैसे दूर-दराज के क्षेत्रों में भी मिशनरी (दूत) भेजे गए।

बौद्ध धर्म अपनाने के बाद अशोक ने वास्तव में एक कल्याणकारी राज्य की स्थापना की और नैतिक मूल्यों को साम्राज्य की नींव बनाया।

अशोक सम्राट द्वारा कुल कितने अभिलेख प्राप्त हुए हैं:

यदि आप कुल अभिलेखों की बात करें, तो अब तक विभिन्न स्थानों से अशोक के लगभग 40 अभिलेख प्राप्त हो चुके हैं। ये अभिलेख चट्टानों, स्तंभों और गुफाओं की दीवारों पर उत्कीर्ण हैं। मुख्य रूप से, अशोक के अभिलेखों को तीन प्रमुख श्रेणियों में विभाजित किया गया है:

अभिलेख की श्रेणीसंख्या/विवरणमुख्य विशेषता
दीर्घ/बृहद शिलालेख (Major Rock Edicts)14 लेखों का समूह (जो 8 अलग-अलग स्थानों से प्राप्त हुए हैं)।इनमें अशोक की ‘धम्म’ (नैतिक नियम) की पूरी नीति, लोक कल्याण के कार्य और कलिंग युद्ध के पश्चात्ताप का वर्णन है।
लघु शिलालेख (Minor Rock Edicts)लगभग 15 (विभिन्न स्थानों से प्राप्त)।ये अशोक की व्यक्तिगत घोषणाएँ हैं और कुछ में उनका वास्तविक नाम (‘अशोक’) भी मिलता है, जबकि अधिकांश में उन्हें ‘देवानांप्रिय प्रियदर्शी’ कहा गया है।
स्तंभ लेख (Pillar Edicts)7 लेखों का समूह (जो 6 अलग-अलग स्थानों से प्राप्त हुए हैं)।ये केवल स्तंभों पर उत्कीर्ण हैं और अशोक के शासन के बाद के वर्षों में धम्म के सिद्धांतों पर जोर देते हैं।

📅 शिलालेखों के निर्माण की समयावधि:

सम्राट अशोक ने अपने शिलालेखों और स्तंभ लेखों का निर्माण अपने शासनकाल के उत्तरार्ध (बाद के वर्षों) में करवाया था। मुख्यतः, इन अभिलेखों का निर्माणकाल तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व (3rd Century BCE) के मध्य से लेकर अंत तक माना जाता है। अशोक के अभिलेखों को उनकी विषय-वस्तु और लेखन के स्थान के आधार पर कालानुक्रम में विभाजित किया गया है:

1. लघु शिलालेख (Minor Rock Edicts):

  • समय: यह अभिलेखों की सबसे प्रारंभिक (earliest) श्रृंखला है।
  • शासनकाल: ये लगभग 260 ईसा पूर्व (BCE) के आसपास, यानी कलिंग युद्ध के तुरंत बाद और उनके राज्याभिषेक के 10वें वर्ष के आसपास उत्कीर्ण किए गए थे।
  • उदाहरण: कंधार द्विभाषी अभिलेख (अरामाइक और ग्रीक) उनके शासनकाल के 10वें वर्ष में लिखा गया था।

2. दीर्घ/वृहद शिलालेख (Major Rock Edicts):

  • समय: यह लघु शिलालेखों के बाद बनाए गए थे।
  • शासनकाल: इन 14 शिलालेखों का समूह उनके राज्याभिषेक के 12वें वर्ष के आसपास (लगभग 257 ईसा पूर्व) उत्कीर्ण किया गया था।
  • विषय: इनमें धम्म की नीति और कल्याणकारी कार्यों का व्यापक विवरण है। तेरहवें शिलालेख में कलिंग युद्ध का वर्णन है।

3. स्तंभ लेख (Pillar Edicts):

  • समय: यह अभिलेखों की सबसे नवीन (latest) श्रृंखला है।
  • शासनकाल: ये उनके शासनकाल के 26वें और 27वें वर्ष के आसपास (लगभग 243 ईसा पूर्व से) बनवाए गए थे।
  • विषय: ये धम्म के सिद्धांतों को अधिक विस्तृत और केंद्रित रूप से समझाते हैं।
  • अशोक ने अपने साम्राज्य में इन अभिलेखों का निर्माण 260 ईसा पूर्व से 232 ईसा पूर्व के बीच करवाया, जो कलिंग युद्ध के बाद उनके ‘धम्म विजय’ (नैतिक विजय) की नीति का प्रचार करने का मुख्य साधन थे।

अशोक सम्राट की मृत्यु कब और कैसे हूई:

सम्राट अशोक की मृत्यु 232 ईसा पूर्व (BCE) में हुई थी। उनकी मृत्यु कैसे हुई, इसके बारे में इतिहासकारों के पास कोई निश्चित प्रमाण नहीं है, लेकिन पारंपरिक बौद्ध ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है।

📅 अशोक की मृत्यु की तिथि:

  • मृत्यु का वर्ष: लगभग 232 ईसा पूर्व (BCE)
  • उम्र: माना जाता है कि उनकी आयु उस समय लगभग 72 वर्ष थी।
  • शासनकाल की समाप्ति: उन्होंने लगभग 37-40 वर्षों तक शासन किया (लगभग 268 ईसा पूर्व से 232 ईसा पूर्व तक)।

❓ मृत्यु के कारण (ऐतिहासिक मत):

अशोक की मृत्यु की सटीक जानकारी ऐतिहासिक स्रोतों में अनुपस्थित है। हालांकि, बौद्ध ग्रंथों और अन्य परंपराओं में उनकी मृत्यु के बारे में निम्नलिखित कहानियाँ प्रचलित हैं:

1. स्वाभाविक मृत्यु (बीमारी)
सबसे अधिक स्वीकृत और संभावित मत यह है कि उनकी मृत्यु सामान्य वृद्धावस्था और लंबी बीमारी के कारण उनकी राजधानी पाटलिपुत्र (Patliputra) में हुई थी। चूंकि उस समय भारतीय शासकों के निधन का कारण दर्ज करने की कोई प्रथा नहीं थी, इसलिए विशिष्ट बीमारी अज्ञात है।

2. बौद्ध ग्रंथों की कथाएँ
श्रीलंका के बौद्ध ग्रंथ महावंश और दीपवंश तथा अन्य बौद्ध किंवदंतियों में उनके अंतिम दिनों का भावनात्मक वर्णन किया गया है। ये कहानियाँ अक्सर उनके दान के प्रति अत्यधिक लगाव को दर्शाती हैं:

  • अंतिम दान: कुछ कथाओं के अनुसार, अपने अंतिम दिनों में, अशोक इतने अधिक दान देने लगे थे कि राज्य का खजाना खाली होने लगा। उनके मंत्रियों को उनका दान रोकना पड़ा।
  • अंतिम क्षण: यह भी कहा जाता है कि उन्होंने अपने अंतिम क्षणों में अपने शरीर का भी दान करने का प्रयास किया था, जिसे उनके मंत्रियों ने रोकने की कोशिश की थी।
  • बौद्ध धर्म के प्रति समर्पण: उनकी मृत्यु उनके धम्म के प्रति अटूट समर्पण की पृष्ठभूमि में हुई।

, सम्राट अशोक की मृत्यु लगभग 232 ईसा पूर्व में हुई थी, संभवतः पाटलिपुत्र में स्वाभाविक कारणों से। उनकी मृत्यु के साथ ही मौर्य साम्राज्य का विघटन शुरू हो गया था।

अशोक की मरत्यु के बाद शासन काल कब तक चला और किसने चलाया:

सम्राट अशोक की मृत्यु 232 ईसा पूर्व (BCE) में हुई। उनके निधन के बाद मौर्य साम्राज्य का शासनकाल लगभग 50 वर्षों तक चला, जब तक कि 185 ईसा पूर्व में अंतिम मौर्य शासक की हत्या नहीं कर दी गई। अशोक की मृत्यु के बाद, साम्राज्य कमजोर होता गया और कई उत्तराधिकारियों ने शासन किया, लेकिन वे अशोक की तरह साम्राज्य को एकजुट और शक्तिशाली नहीं रख पाए।

⏳ अशोक की मृत्यु के बाद का शासनकाल:

  • पश्चिमी भाग: यह भाग अशोक के एक पुत्र कुणाल के अधिकार में आया, जिसके बाद उनके पुत्र संप्रति ने शासन किया। संप्रति को जैन धर्म के प्रबल समर्थक के रूप में जाना जाता है।
  • पूर्वी भाग (मगध, राजधानी पाटलिपुत्र सहित): यह भाग अक्सर अशोक के पोते दशरथ मौर्य के नियंत्रण में रहा। दशरथ ने अपने दादा की तरह ही देवनामप्रिय की उपाधि धारण की और आजीविक संप्रदाय के लिए गुफाओं का निर्माण करवाया।

👑 मुख्य उत्तराधिकारी और अंतिम शासक:
अशोक के बाद मौर्य वंश को कई कमजोर शासकों ने चलाया, जिसके कारण साम्राज्य का पतन शुरू हो गया।

शासक (अशोक के बाद)शासन की अवधि (लगभग)महत्वपूर्ण तथ्य
कुणाल(अस्पष्ट, कुछ वर्षों तक)अशोक के पुत्र; अंधा कर दिया गया था।
दशरथ मौर्य232 ईसा पूर्व – 224 ईसा पूर्वअशोक के पोते; आजीविकों के लिए नागार्जुनी गुफाएँ बनवाईं।
संप्रति(पश्चिमी भाग में प्रमुख)जैन धर्म के महान संरक्षक।
शालिशुक215 ईसा पूर्व – 202 ईसा पूर्वमौर्य वंश के कमजोर शासकों में से एक।
बृहद्रथ187 ईसा पूर्व – 185 ईसा पूर्वअंतिम मौर्य शासक।

💥 मौर्य वंश का अंत:

मौर्य वंश का शासन अंततः 185 ईसा पूर्व में समाप्त हो गया, जब अंतिम मौर्य शासक बृहद्रथ की हत्या कर दी गई।

  • हत्यारा: बृहद्रथ की हत्या उसी के सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने की थी।
  • परिणाम: पुष्यमित्र शुंग ने मौर्य साम्राज्य को समाप्त कर दिया और एक नए राजवंश शुंग वंश की स्थापना की, जिससे मध्य भारत में ब्राह्मणवादी पुनरुत्थान के एक नए युग की शुरुआत हुई।

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